• विपक्ष आपस में उलझा, संघ मुसलमानों में भी पहुंचा

    संघ और भाजपा जो मुसलमानों से मिलने और अपना दृष्टिकोण प्रचारित करने का जो काम करती है उसका वास्तविक उद्देश्य भारत के मुसलमानों को कोई खास मैसेज देना नहीं होता वह अन्तरराष्ट्रीय जगत में धर्मनिरपेक्ष समावेशी छवि बनाने के लिए होता है।

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    शकील अख्तर
    संघ और भाजपा जो मुसलमानों से मिलने और अपना दृष्टिकोण प्रचारित करने का जो काम करती है उसका वास्तविक उद्देश्य भारत के मुसलमानों को कोई खास मैसेज देना नहीं होता वह अन्तरराष्ट्रीय जगत में धर्मनिरपेक्ष समावेशी छवि बनाने के लिए होता है। भारत की दुनिया में एक आधुनिक देश की छवि है। उसके खिलाफ कोई भी खबर जब विदेशों में जाती है तो सरकार के लिए बहुत प्रतिकूल माहौल बन जाता है।


    विपक्ष में झगड़े ही झगड़े हैं संघ परिवार में पूर्ण एकता। 2024 सिर पर खड़ा है मगर विपक्ष के दल अकेले लड़ेंगे, कांग्रेस के साथ नहीं जाएंगे, तीसरा मोर्चा बनेगा में व्यस्त हैं। उधर बीजेपी तो जो कर रही है कर ही रही है उसकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी पूरी तरह काम पर लगी हुई है। बहुत सारे मोर्चों पर काम करने के अलावा वह मुसलमानों के बीच खूब सक्रिय है। एक तरफ प्रधानमंत्री पसमांदा ( पिछड़े) मुसलमानों को साथ जोड़ने की बात कर रहे हैं और भाजपा इसके लिए जगह-जगह सम्मेलन कर रही है। वहीं संघ मुस्लिम धर्म गुरुओं, बुद्धिजीवियों के अलग- अलग समूहों से लगातार बात कर रहा है। ऐसी कई बातचीतें हो गई हैं। संघ का मुस्लिम मंच इन्हें औपचारिक और अनौपचरिक दोनों तरीके से आयोजित करता रहता है। इसमें संघ प्रमुख मोहन भागवत से मिलाने से लेकर अन्य वरिष्ठ नेताओं से मुलाकातें करवाई जाती हैं।
    अब जब चुनाव सामने आ गए हैं तो यह सिलसिला तेज हो गया है। पहले जमीयत उलेमा ए हिन्द के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी से संघ प्रमुख मोहन भागवत मिले। फिर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त, एसवाई कुरैशी, दिल्ली के पूर्व एलजी नजीब जंग, एएमयू के पूर्व उप कुलपति जमीरुद्दीन शाह, पत्रकार शाहिद सिद्दिकी से भागवत मिले। और अभी संघ के वरिष्ठ नेता कृष्ण गोपाल जामिया हमदर्द के वाइस चांसलर अफशार आलम, वहां के रजिस्टार अन्य प्रोफेसर, एएमयू, जामिया मीलिया के प्रोफेसर उर्दू अखबारों के संपादकों से मिले।

    इन मुलाकातों का जनता पर क्या असर पड़ेगा यह अलग बात है मगर मिलकर आने वाले सारी मुस्लिम शख्सियतें संघ के तर्कों से काफी प्रभावित लगीं। संघ आज से नहीं 1977 से मुसलमानों के बीच यह संदेश देने की कोशिश करता है कि उनकी समस्याओं की जिम्मेदार उनका अपने धार्मिक नेताओं पर ज्यादा निर्भर होना, हमारे साथ संवाद न करना और दीनी और दुनियावी तालीम को अलग नहीं करना है। संघ हमेशा से यही कहता रहा है कि वह किसी के साथ भेदभाव नहीं करता। अभी हाल की मुलाकात में उसने कहा कि प्रधानमंत्री घर योजना, मुफ्त अनाज वितरण, शौचालय बनवाने का लाभ सबको मिला है।

    मुसलमानों में असुरक्षा, लीचिंग जैसे मामलों पर वे उल्टा सवाल पूछते हैं कि कांग्रेस के समय में कितने दंगे हुए? साथ ही वे यह भी कहते हैं कि हम 85 प्रतिशत हैं आप 15। आपको हमारे साथ मिलकर रहना होगा। इसके साथ वोटों की बात भी वे साफ करते हैं कि आपके बिना वोटों के हम जीत रहे हैं। और जीतेंगे। साथ ही अगर आपको कुछ भय जैसा लगता है तो उससे हमारा फायदा ही होता है। हिन्दू और समर्थन देता है।

    मजेदार यह है कि संघ पूरी तैयारी के साथ होता है। और बातचीत में कोई उनसे यह सवाल असुरक्षा, लीचिंग वगैरह नहीं पूछता है। वे खुद ही संभावित सवालों के जवाब देते हैं। और अभी हाल में जो तीन-चार ग्रुप उनसे मिलकर आए हैं वे सब उनकी बातों से प्रभावित लगते हैं। सबको एक ही शिकायत है कि कांग्रेस तो हमसे मिलती नहीं। हम इतने सालों तक उन्हें वोट देते रहे मगर उन्होंने कभी हमें मिलने नहीं बुलाया। यह न केवल सादर आमंत्रित कर रहे हैं बल्कि यह भी कह रहे हैं कि हम वोटों के लिए ऐसा नहीं कर रहे। हमें मालूम है कि आपके वोट हमें नहीं मिलेंगे। मगर फिर भी वे बात कर रहे हैं।

    यहां फिर वही सवाल आता है कि मुसलमान नेताओं, और अन्य लोगों के मिलने से आम मुस्लिम अवाम पर क्या फर्क पड़ता है। मिलकर आने वाले तो माहौल बनाते हैं। संघ के नेता वैसे भी बातचीत में बहुत विनम्र होते हैं। रिसोर्सेस बहुत होते हैं। इसलिए तर्क तथ्य अपने हिसाब के बहुत लाते हैं। इसलिए मिलकर आने वाले उनकी बातों को दोहराते हुए मुस्लिम समाज पर ही सवाल उठाने लगते हैं।

    मुस्लिम समाज पर सवाल उठाने में कोई बुराई नहीं है। उठाना चाहिए। मगर दूर खड़े होकर, उन्हें गलत समझकर, विरोधी निगाहों से नहीं। अपना समझकर संवेदना के साथ, सहयोग के भाव से। संघ की तैयारी पर हमने कहा तो संघ हर तरह की तैयारी करती है। नए शब्द भी गढ़ती है। पहले मुस्लिम तुष्टिकरण, छद्म धर्मनिरपेक्षता की शब्दावली के जरिए धर्मनिरपेक्ष पार्टियों को दबाव में लाया और हिन्दुओं को मैसेज दिया कि उनके अलावा बाकी पार्टियां मुसलमानों के साथ विशेष व्यवहार करती हैं। इस धारणा का कांग्रेस और खुद मुस्लिम बुद्धिजीवी समुचित प्रतिकार नहीं कर पाए। हिन्दुओं के बड़े हिस्से में यह धारणा घर कर गई कि मुसलमानों के साथ कोई विशेष व्यवहार हो रहा है। जिसका फायदा भाजपा ने खूब उठाया। इसलिए आज वह कहती है कि हमें आपके वोट की जरूरत नहीं। आपका वोट न लेकर हमारा वोट बढ़ रहा है।

    अब एक और नया शब्द समरसता गढ़ा है। गढ़ा तो यह दलितों के लिए है। मगर पिछड़ों और मुसलमानों में भी उपयोग में आ जाता है। इसका अर्थ है कि आप समाज के साथ समरस हो जाइए। घुल जाइए। अलग से कोई पहचान या समानता की मांग मत कीजिए। सीधा मतलब है कि यथास्थितिवाद। सामाजिक न्याय, समानता के स्थान पर इसको स्थापित करने की कोशिश। यही मुसलमानों को भी मैसेज है। खुद को अल्पसंख्यक कहना बंद करो। जो अल्पसंख्यक छात्रवृति बंद की उसको सही ठहराने के लिए यही कहा। बाकी आरक्षण पर भी यही सोच है कि दलित पिछड़ों को विशेष क्यों? मोहन भागवत ने बिहार में आरक्षण पर पुनर्विचार की बात कही भी थी। संघ को इस विषय में महारत है कि वह बहुत सारी अलग-अलग बातें कह और कहलवा सकता है। मगर उसका मूल उद्देश्य एक ही है। समाज का यथा स्थितिवाद कायम रखना। सामाजिक व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं। अगर हो भी तो वह प्रतिगामी। प्रगतिशील बिल्कुल नहीं। इस मामले में उस कई बार मुसलमानों का सहयोग भी मिलता है। और वह महिला-विरोधी, दलित पिछड़ा-विरोधी मामलों में लेती भी है। कई जगह दोनों की सामंती और प्रतिक्रियावादी मानसिकताएं एक समान मिल जाती हैं।

    लेकिन मूल मुद्दा यह है कि ऐसे में आम मुसलमानों को क्या करना चाहिए। उसके पास ज्यादा विकल्प नहीं हैं और न ही उसको जरूरत है। आरएसएस को भाजपा को जो करना है वह करेगी। उसके नाम पर मिलने जा रहे मुसलमान नेता, धार्मिक लोग अन्य को जो करना है वह भी करेंगे। जनता से किसी को मतलब नहीं है।
    तो जनता क्या कर सकती है। मुसलमान को हर हाल में अपना सारा ध्यान अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर लगाना चाहिए। यह वह दौलत है जो उसके बच्चों से कोई छीन नहीं पाएगा। पढ़ाई और नौकरी इन दो चीजों से दलितों ने अपना भविष्य बदल लिया है। मुसलमान दोनों में पीछे है।

    यहां एक और बात कि संघ और भाजपा जो मुसलमानों से मिलने और अपना दृष्टिकोण प्रचारित करने का जो काम करती है उसका वास्तविक उद्देश्य भारत के मुसलमानों को कोई खास मैसेज देना नहीं होता वह अन्तरराष्ट्रीय जगत में धर्मनिरपेक्ष समावेशी छवि बनाने के लिए होता है। भारत की दुनिया में एक आधुनिक देश की छवि है। उसके खिलाफ कोई भी खबर जब विदेशों में जाती है तो सरकार के लिए बहुत प्रतिकूल माहौल बन जाता है। वहां के मीडिया से लेकर डिप्लोमेट तक सवाल करते हैं। चीन, पाकिस्तान और अब तो दूसरे छोटे पड़ोसी देशों के होस्टाइल माहौल में भारत यूरोप, अमेरिका, ब्रिटेन अरब मुल्कों के सामने एक आंतरिक समस्याओं से घिरा देश दिखना नहीं चाहता। भारत को विदेशों में आधुनिक मूल्यों वाली लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता की ही छवि दर्शाना होती है।

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